शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

आखिरी ख़त प्यार के नाम



आखिरी ख़त प्यार के नाम
कुछ उम्र का पैमाना था , कुछ नशा था हुस्न का,
कुछ बहकने का इरादा था, आदेश था कृष्ण का,
चाहत थी मेरी भी, उन बेड़ियों को तोड़ कर उड़ जाने की,
जो कह लातीं थीं, रस्मों रिवाज़ और बंदिशें जमाने की,
पर मेरी ये आरजू दिल में ही सिमट के रह जाती,
जो मैं अपनी जिंदगी में आप से न मिल पाती,
साहस जगाया आपने, मुझमें अपने प्यार से,
समा गयी ताक़त मुझमें, लड़ने को संसार से,
शायद जगा दिया था आपने, मेरे सोये हुए जोश को,
जो मैंने भुला दिया समाज की, उस पिछड़ी सोच को,
उड़ चली मैं आपके संग, भावनाओं के आकाश में,
उम्मीद और विश्वास  लिए, उस प्रेम प्रकाश में,
पर क्या पता था हमें, क्या छुपा है भविष्य काल में,
खो जायेगा वो सपना, जो बुना था हमने कई साल में,
प्रेम की बगिया में लगाये गये, मेरे विस्वास को उखाड़ने को,
नही जानती थी 
कि, मेरे अपने ही बेताब हैं मेरी दुनिया उजाड़ने को,
यकीन मानो कुछ कर्ज़ था मुझपे, जो साथ आपका छोड़ दिया,
और न चाहते हुए भी, यूँ अपनी किस्मत का रुख  मोड़ दिया,

वेसे तो कुछ फर्ज़ थे उनके भी, जो मेरे अपने थे,
क्यूंकि ये किसी और के नहीं, उनकी बेटी के ही सपने थे,
पर शायद उनको मुझसे ज्यादा, दुनिया की फ़िक्र बड़ी थी.
तभी तो मेरी ख़ुशी से ज्यादा, उन्हें अपनी इज्ज़त की पड़ी थी,
वो भूले तो क्या हुआ, मुझे तो फर्ज़ निभाना था,
छोड़ तुम्हारा साथ, घर की इज्ज़त को बढ़ाना था,

खैर जो हुआ सो हुआ, अब कहना मुस्किल है कि दोषी कौन था,
क्या वो भगवान जो सब देखता रहा, फिर भी मौन था,
या मैं जिसने भुला के बंदिशों को सपना देखा आज़ादी का,
या मेरे अपने जिन्हें मेरी ख़ुशी से डर था अपनी बर्बादी का,

पर अब सज़ा का बोझ तो हम सब को उठाना होगा,
उसके लिए आपको मुझे इक विश्वास  दिलाना होगा,
मैं तो जी ही रही हूँ अपनी जिन्दगी फिर बेड़ियों में,
पर आपको फिर मुस्कुराना होगा ! पर आपको फिर मुस्कुराना होगा !!

                                     - शक्ति शर्मा

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