-सुयोग वानखेड़े
मेरी प्यारी प्रियतमा,
अपने प्यार का इजहार तो मै इस
पन्ने पर कुछ इस तरह करूँगा कि मेरे कलम के स्याही की एक एक बूँद इस कोरे पन्ने से
प्यार करने लगेगी....
और जब तुम मुझे वापस पत्र"हाँ" लिखकर भेजोगी, तब
देखना, तुम्हारी कलम भी तुम्हारे हाथों के थरथराहट से इश्क कर बैठेगी..... मुझे
विश्वास है....
तेरी नाजुक अदाएं और नगमों से..
हो गए कत्ल
ए आम...
जब भी कभी हम
गुजरे तेरे
घरसे...
आशिको के
चौराहे पे
हो जाती
है चर्चा अपने प्यार कि....
वैसे तेरे हुस्न के दीवाने तो लाखो
थे पड़े गलियों में ... लेकिन मेरा प्यार.. तेरी कसम प्रियतमा.. सबसे अलग ..सबसे
जुदा.. जब भी उस सुहानी गली से गुजरता था हर बार ठोकर खाता था.. क्यूंकि मेरी नज़रे
तो हर पल तुम्हे ही तलाशती थी..
कितना समय अब मुझे यूँही
तरसाएगी..अब तो मेरे जिंदगी के झील का कोमल कमल बनके उसे खुबसूरत बना दे..
चन्दन सा बदन
,चंचल चितवन..
धीरे से तेरा
ये मुस्काना...
मुझे दोष न
देना जग वालों.
हो जाऊं अगर मै दीवाना...
तेरे हुस्न ए दीदार के क्या कहने.
अप्सराएं भी शरमा जाएँ तेरे बदन की नाजुक नक्षी देखकर. तू तो सुन्दरता की मूरत
है.. तेरे मन कि सुन्दरता भी मुझे खूब भाती है.. तन भी सुन्दर .. मन भी सुन्दर..
कुदरत कि बड़ी लुभावनी कलाकृति हो तुम...
अब मान भी जाओ हसीना.. "तुम
मेरी हो" ये काले पत्थर कि लकीर है
और मै तो जन्म भर से तेरा ही हूँ... तो चल चले और बनाए अपने सपनो का जहाँ ...
मिलके... अब कसमे वादे क्या करने.. पहले ही किसी जनम में वे हो चुके.. अब इस जनम
का मिलन शेष है..
तेरी साँसे मेरे लिए अटकती है ... तेरी
आँखे मेरे लिए तरसती है.. तेरी पायल मेरे लिए खनकती है.... मुझे पता है... क्यूंकि
तुम मेरे भीतर ही तो हो.. अब रातो के सपनो में आना छोड दे... चल कल ही मिलते है..
किसी वीरान.. सुनसान.. प्यारी जगह पर.. जहा बस एकही आत्मा हो.. बस एक.. मेरी
तेरी..
इंतजार कर रहा हूँ... उसी
सुहानी गली में... J
तेरा जन्मो जनम का आशिक..
दिलसे पूछ.. नाम मिल
जाएगा...
मशाल्लाह!!
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