-निशांत कुमार
सागरों के संगम स्थल कन्याकुमारी के शीर्ष पर स्थित तिरुवल्लुवर की १३३ फीट ऊँची प्रतिमा लहरों के बीच शिल्प एवं व्यापकता का उदघोष करती हुई मन मस्तिष्क पर जिज्ञासा मिश्रित आनंद का प्रतिबिम्ब उकेरती है / अतीत से आधुनिक काल तक तिरुवल्लुवर द्वारा रचित काव्य ग्रन्थ "तिरुक्कुरल" की निरन्तर प्रासंगिकता, सृजनशील मानव साहित्य की शाश्वतता का प्रतीक है / मूलतः तमिल में रचित इस पुस्तक के प्रसंगों का उल्लेख प्राचीन ग्रन्थ "शिलाप्पदिकम्" से दक्षिण भारत के आम लोगों के दैनंदिन संवाद में पाया जा सकता है/ हिंदी के आदरसूचक संबोधन "श्री" का तमिल सम्नार्थी "तिरु" से सदा सदा के लिए अलंकृत इस महान कवि वल्लुवर के प्रति आम जनों के स्नेह एवं आदर का पता चलता है/ तिरुक्कुरल में तीन खंड हैं - अरम् (धर्म), पोरुल (अर्थ), एवं इन्बम् (काम)/ अरम् में कुल ३८ अध्याय हैं, इसमें ईश्वर की वंदना , मानव के अच्छे व्यव्हार , गृहस्थ एवं सन्यास धर्म से लेकर वर्षा के महत्व का वर्णन है/ पोरुल में सांसारिक कार्यों के निष्पादन के लिए सही आचरण , राजनीती के प्रसंग, राजा के गुण, अधिकारों के साथ साथ कर्त्वयौं पर भी चर्चा की गयी है/ इसमें कुल ७० अध्याय हैं/ इन्बम् के २५ अध्यायों में स्त्री पुरुष पारंपरिक सम्बन्ध, संयोग एवं वियोग श्रृंगार के साथ साथ पारस्परिक कलह एवं विवाह पूर्व प्रेम संबंधों पर प्रकाश डाला गया है/ प्रत्येक अध्याय में कुल १० दोहें हैं/ इस प्रकार तिरुवल्लुवर ने १३३ अध्यायों एवं १३३० दोहों में मानव एवं समाज के सभी आयामों पर रौशनी डाली है/ प्रस्तुत है, तिरुक्कुरल के अंग्रेजी संस्करण पर आधारित कुछ काव्यानुवाद:
आदिस्वरुपा हैं सृजनाधार, जगतमाला का " कुरल १.
" पावस की निरंतरता है , वसुधा का मूल आधार ,
प्रासंगिक है कहना इसे , प्रकृति का अमूल्य उपहार " कुरल ११.
" विशिष्ट जन करें, दुष्कर कार्य का संधान ,
सामान्य जन का, जिनपे ना जावे ध्यान," कुरल २६.
"आवश्यकता के कठिन पलों में ,
मदद के लिए उठा एक हाथ,
चाहे कितना भी तुच्छ हो,
पर श्रेयस्कर है , तुलना में पूरी दुनिया का साथ " कुरल १०२.
" अक्षरों की कला एवं अंको का विज्ञान,
प्राणयुक्त मानव के ये हैं, दो नेत्र सामान " कुरल ३९२.
" नीर तल के साथ, ज्यौं नीरज हों उर्ध्वस्त,
ज्ञान वृद्धि के साथ, मनुष्य हों कीर्तिपथ पर प्रशस्त " कुरल ५९५.
" समर क्षेत्र के शुर वीर सामान,
'होनहार पुत’ करें, घर, परिवार के संकटों का समाधान " कुरल १०२७.
" मेरे एक देखने भर से , झुक गये उनके नयन,
मेरी थोड़ी सी उपेक्षा पे , मुस्करा के किया सम्मोहन " कुरल १०९४.
" मतिभ्रमित तारे, घूम रहे यूँ ही आसमां में
दूसरा चाँद, कहाँ उग आया अंधियारे में " कुरल १११६.
" मेरे अंतर मन,
करती हूँ अर्पित, तुझको ये नयन ,
उन्हें देखने की अभिलाषा में,
कहीं न कर जायें मुझे भक्षण " कुरल १२४४.
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