शुक्रवार, 7 सितंबर 2012

सुहानी रात





खिड़की में बिताया हुआ पल,एक खुबसूरत सा ख्वाब छोड़ जाता है | बारिश की टिप टिप बरसती बुँदे ,थोड़ी सी मुस्कराहट,और झींगुरो की वो हल्की हल्की आवाज ...सब का बेतोड़ जोड़ सा महसूस हो रहा है |
सनसनाती सी हवा झील में बने रोशनी के प्रतिबिम्ब सब एक मनमोहक स्वपन सा लगता है|
पहाडियों के पीछे की छुपती  छुपाती सी रोशनी लगता है कोई हमारे साथ लुक्का छुपी खेल रहा हो|
हवा  के बंद होही पेड़ पोधे इस कदर शांति से खड़े हो जाते है जैसे किसी छोटे बच्चे को डाट दिया हो और वो दर से सहम कर कोने में खड़ा हो गया हो और माहोल में गंभीरता झा गयी हो |
सुनसान पड़ी इन सडको पर एक दो वाहन इस कदर गुजर जाते है जैसे इम्तिहान के वक्त कुछ न आने पर कलम नाम और रोल नंबर लिखने के लिए दोड पड़ता है|
काले बदलो की आकाश में अठखेलिय और तरह तरह की बनती बिगडती मनोआक्रतिया बनती बिगडती नजर आती है| काली चादर ओडे आकाश और उसपर आती बदलो हुई बदलो की गर्जना लगता है जैसे कोई खूंखार डाकू हमारी तरफ बढता ही चला आ रहा हो|
हल्की सी चांदनी में डूबती ये रात और चाँद का  बदलो की  ओट में छुपना और फिर बाहर निकल आना लगता है जैसे कोई दुल्हन शर्म से पल्लू की ओट में छुप रही हो |
काले आकाश में टिमटिमाता वो अकेला तारा लगता है जैसे उस खूंखार डाकू की चादर में हल्का सा छेद हो रखा हो|
                                                                                                                              -मनिता कुमारी रायगर

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