शनिवार, 15 सितंबर 2012

हल्की हल्की दोस्ती............


ये हल्की हल्की दोस्ती,हल्की हल्की रहने दे... 
रिमझिम,उडती बारिश में,सौंधी खुशबू बहने दे... 
अनजानापन और गहरा रिश्ता,ये दो ऊंचे पर्वत हैं... 
इनके बीच की इस डोरी पर,अहिस्ता से चलने दे... 

अपने नए लगते चेहरों में,पुरानापन ढलने दे...
गैर लगती सी आँखों में,कुछ अपनापन पढने दे...
दुनिया की दोपहर बीती,अब दोस्ती की शाम सजने दे...
हल्की हल्की दोस्ती,हल्की हल्की रहने दे॥

दूर परिंदे उड़ते हैं,जैसे आकाश की राहों में...
या एक मोती ढलता है,अपनी सीपी माँ की बाहों में...
वैसी प्यारी इन खुशियों में,तेरी दोस्ती बसने दे...
हल्की हल्की दोस्ती,हल्की हल्की रहने दे॥

गहरे रिश्तों की नगरी में,उम्मीद के बंधन होते हैं,
वो बंधन जब पूरे ना हों,नैना बरबस रोते हैं...
साथ रहें,आज़ाद रहें,वो धीमी सरगम बजने दे...
हल्की हल्की दोस्ती,हल्की हल्की रहने दे॥

तेज़ सूर्य के दिवा पुंज से,कितने जीवन बढ़ते हैं॥
चन्द्र किरण के स्नेह कुञ्ज में,नींद की चादर बुनते हैं॥
वैसे ही मन के दिन रात में,संवाद का जीवन बहने दे....
चाहे कुछ कह ले,या चुप रहकर बातें करने दे॥

रिमझिम,उडती बारिश में,सौंधी खुशबू बहने दे...
हल्की हल्की दोस्ती,हल्की हल्की रहने दे...

                                -श्रेया अग्रवाल

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें