शनिवार, 15 सितंबर 2012

कोई यूँ

कोई यूँ सुला दे कि जागने से वास्ता ना रहे कोई..
कोई यूँ रुला दे कि हंसने से वास्ता ना रहे कोई..

डर के रंगों से क्यूँ सहमा है हर चेहरे का पन्ना..
डर के रंग भरने वालों को इंसान बना दे कोई...

तार ही तार बिछ गए हैं,दुनिया में हर कदम पर..
बेतार करके हम सबको,मुस्कान से हर दिल जोड़ दे कोई..

दौड़ रहे हैं हम, तुम, चंदा सूरज, तारे...
एक बार ठहर के गले लगा ले कोई...

वो ऊपरवाला कहता है,मुझे देख ले खिलते फूलों में तू...
पर हर पल, माला में नाम रटने वाले को ये समझा दे कोई..

बात बात पर क्यूँ मरना चाहता है,ऐ जवान दिल तू?
एक बार तो तेरे लिए,जिंदगी का घूंघट उठा दे कोई...


                                       -श्रेया  अग्रवाल 

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