शुक्रवार, 8 फ़रवरी 2013

यह ऐसा मुद्दा है जिसके लिए कोई एक ज़िम्मेदार हो ही नहीं सकता है !पूरे समाज की सामूहिक जवाबदारी होती है अगर महिलाओं के प्रति अपराधों के घटने की दर घटने की बजाय और तीव्रता और शीघ्रता से बढती जा रही है तो! पुलिस या क़ानून इंसान में खौफ पैदा करने के लिए बनाये गये हैं जब भी वह कोई कानूनन गलत काम करने जा रहा है तो ...क्यूंकि वर्तमान में डर से ही अनुशासन लाया जा सकता है .स्वानुशासन की बातें आजकल व्यावहारिक रूप से बेमानी हैं .आज अगर महिला को कोई (हाल ही के अध्यादेश के पारित होने के पूर्व की ही बात ले लीजिये अगर आप भी मेरी तरह आशावादी हैं तो )छेड़ता  है या कोई अपराध करता है तो पुलिस ही एक असंवेदनशील ईकाई बन जाती है .-कई बार तो यह रक्षक ही भक्षक बन जाती है .देश की कानूनी प्रक्रिया तो लचर है ही ,पीढियां निकल जाती हैं और पीड़ित तो क्या उनके परिवार जन भी आस की ताक में लगे रहते हैं।
 अरुणा शानबाग के साथ हुए हैवानी बलात्कार की सज़ा आज भी उसकी आत्मा एक ' जिंदा लाश ' ढोते  भुगत रही है पर उसका दोषी न सिर्फ सात साल की सजा ही भुगता बल्कि आज बड़ी शान से दूसरे किसी अस्पताल में नौकरी करता है। पर  मीडिया ने  इस खबर को ऐसे लिया -अरुणा के साथ एक साथी वार्ड बॉय ने बलात्कार किया .वो गुमनाम है पर अरुणा को सब जानते हैं !.क्या उसे शर्मसार किया गया ....क्यूँ ऐसे अपराधियों के चेहरे पर कपडा ढंकते हैं ....जबकि कानूनी तौर पर गलत होते हुए भी अक्सर पीड़ित महिला या लड़की तो सुर्ख़ियों में ला दी ही जाती हैं !निर्भय तो ऐसी थी जिसने सारे  देश को जगाया पर हर रोज़ कितनी ही ऐसी निर्भया ,उनके शरीर और आत्माएं बलात्कृत होती हैं -कई तो थानों के रजिस्टरों पर दर्ज भी नहीं होती क्यूंकि एक तो पुरुष वर्चस्व वाले पुलिस महकमे के सामने महिलाएं वैसे ही सामजिक मर्यादा के भय से नही जातीं और फिर उनकी ढीली और घटिया अमानवीय मानसिकता ,रवैया उन्हें पुलिस कोर्ट जाने से रोकती है  -ऐसे ऐसे अभद्र ,अपमानजनक शब्दों में पूछताछ करते हैं .
  
          जब एक औरत पर कोई अश्लील टिपण्णी करता है ,या उसकी इज्ज़त के साथ खेलता है तो अधिकांशतः मामलों में वह किसी को नही बताती या बताती भी है तो परिवार इसे गुप्त रहने देता है क्यूंकि बात परिवार की इज्ज़त से जुडी होती है!! कोर्ट में भी खासकर भारत में ऐसे सवाल किये जाते हैं जो उसके साथ हुए हादसे के जख्मों को ताज़ा कर देते हैं .अखबार में ही मैंने पढ़ा था एक बार कि एक पीडिता के चिकित्सकीय परीक्षण के दौरान एक 'महिला ' नर्स उसे बार बार ऐसे बुलाती थी -कौन है वो जिसका रेप  हुआ है !उसकी पहचान अब उस जख्म से है ....उस बेचारी होने में है .

लोग अभी भी सोचते हैं कई जगहों पर कि लड़की ने मुंह 'काला ' कर लिया है ..तभी तो आज भी 'ऐसी ' लड़कियों को उन्ही अपराधियों के साथ ब्याह दिया जाता है जबकि 'पति' होने के कारन उसका अपराध माफ़! क्यूँ ...अरे अब उससे ब्याह कौन ही करता तो उसे ये ज़िन्दगी भर की सजा दे दो ..करे कोई सजा भरे कोई! 

इसीलिए यह बेहद संजीदा सवाल जब आधी आबादी से जुडा हो तो हम सब को एक ऐसे समाज की नींव रखनी होगी जो उस हिस्से के लिए भी सुरक्षित हो और इसके लिए शुरुआत घरों से ही करनी होगी .आखिर किसी भी असंवेदनशील पुलिस ,नर्स या वार्ड बॉय की मानसिकता वहीँ से बदली जा सकती है .अपने बच्चों को खासकर के लड़कों को औरत की महत्ता ,सम्मान और बराबरी का ज्ञान भी दें और जीवन में उतारने को भी कहें।बेटे बेटियों को एक सी परवरिश दें .उनके साथ एक सा व्यवहार करें और उन्हें एक सफल या धनवान व्यक्ति  बनाने के चक्कर में एक नेक इंसान बनाना न भूलें जो लिंग,जाति ,धर्म,की संकीर्णताओं से परे सोचे और करे! 

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