रविवार, 7 अप्रैल 2013

क्या आधुनिकता महिलाओं में बढती असुरक्षा का कारण है ?



आधुनिकता क्या है ? सबसे पहला प्रश्न तो यही है .!! खैर वही इस आलेख में बात करते हैं .
कपड़ों से मनुष्य की पहचान होती है का जुमला बहुत पुराना हो गया है अब।पर लोगों के दिमाग तो  उसी में उलझे हुए हैं .अगर कोई लड़की या महिला किसी स्कर्ट या अन्य किसी गैर भारतीय परिधान में दिखती है तो हमारे सामाजिक सदस्य उसके प्रति एक धारणा  ही बना लेते हैं और फिर उसे उसकी   '  आज़ादी ' की  'सज़ा'  देने के लिए उसे परेशान करते हैं -क्यूँ! संविधान के अनुसार महिलाओं को हर प्रकार से पुरुषों के बराबर अधिकार दिए गये हैं तो मर्ज़ी के कपडे पहनने की आज़ादी भी उसी में शामिल है! हाँ और बात है कि इसके साथ यह नैतिक कर्त्तव्य या कहें कॉमन सेंस भी है-उस ' आधुनिक पहनावे  'से किसी को अजीब न लगे या आप खुद ही के लिए सच में मुसीबत को आमंत्रित न कर रही हों .

         इसीलिये 99 प्रतिशत मामलों में आधुनिकता से असुरक्षा का कोई सम्बन्ध नही है विशेषकर भारत में क्यूंकि विदेशों में तो बिलकुल बिंदास रहन सहन होता है फिर भी  महिला अपराधों की वजह सिर्फ पहनावा नही होता।पुरुष भी जब चाहे जैसे अपनी सुविधा के अनुसार कपडे पहन सकते हैं ,महिलाएं तो नही न सड़क चलते उनपर फिकरे कसती हैं या उनपर कुदृष्टि डालती हैं ! तो फिर महिलाएं ही क्यूँ ?

यही कारण है कि आज एक बेटी घर से बाहर निकलती है तो माता -पिता उसकी चिंता में लगे रहते हैं -तरह तरह की हिदायतों और नसीहतों के साथ उसे जाने देते हैं-और अगर बेटी मेरी तरह घर से मीलों दूर बैठी हो तो माँ हर फ़ोन पर सुरक्षा का ध्यान रखने वाली बात को दोहराना नही भूलतीं ! बात मानसिकता की है -बात पुरुष की है जिसे इस पितृसत्तात्मक समाज में सब कुछ करने की आज़ादी है -वो चाहे तो पीकर अपने खोये हुए होशो-हवास में किसी के साथ कुछ भी अभद्र कर या कह सकता है -हाल  ही में जबकि मुंबई को  बेहद सुरक्षित माना जाता है ,वहीँ हमारे कॉलेज  कैंपस के अन्दर भी रात को 2-3 बजे कई बार कुछ छात्र ऐसी असभ्य हरक़तें करते पाए गये हैं जिसकी प्रत्यक्ष शिकार या गवाह मेरी कई शोध कर रही वरिष्ठ छात्राएं रहीं हैं -शिकायत की गयी -कार्यवाही भी होगी -सकारात्मक रूप से होगी-सब अपनी जगह सही है पर बात एक विश्वास की है -बात अन्दर ज़ज्ब की हुई सुरक्षित होकर निडर होकर घूमने की भावना की है जो संवैधानिक रूप से सभी को मिलनी चाहिए -गुवाहाटी में हुई छात्र के साथ दुर्भाग्यपूर्ण घटना के वक़्त कुछ लोगों का कहना था  -
कि उसे 10 बजे रात  को बाहर  बार नही जाना चाहिए था -मेरा सवाल है क्या उन सरेआम उसे मोलेस्ट करने वाले लोगों से किसीने पुछा इतनी रात को वो क्या कर रहे थे -कपड़ों की बात करें तो चलिए वो भी ले लेते हैं उसने जींस टी-शर्ट पहनी थी  -जो उसके तन को अच्छे से ढंकी हुई थी -और अपने दोस्तों के साथ बाहर आई हुई थी -क्या इतना हक भी नही है उसे! तो कुलमिलाकर अगर आधुनिक जीवनशैली के नाम पर आप किसी और के संवैधानिक अधिकारों  का हनन करते हैं तो यह बेहद गलत है .
                मेरी स्कर्ट से मेरी आवाज़ ऊंची है -एक विरोधाभास् को दर्शाता है -पूर्वकाल में स्कर्ट और आवाज़ दोनों ही ऊंची नही थी तब भी कहाँ महिलाएं महफूज़ रहा करती थीं -आज भी बुर्के और हिजाब में ढँकी मुस्लिम महिलाओं के साथ छेड़खानी और बलात्कार होते हैं तो अब कौन इसके लिए कुसूरवार है?
मेरी इन दलीलों से लग रहा हो अगर हमारे प्रबुद्ध पाठक पाठिकाओं को कि मैं एक पक्की फेमिनिस्ट की तरह बातें कर रही हूँ पर इसका मतलब यह नही कि मैं सिक्के के दूसरे पहलू के बारे में बातें नही करना चाहती ! तो चलिए अब आधुनिक ' सोच ' की चर्चा करते हैं जो आधुनिक पहनावे का स्त्रोत ही है पर इसका दायरा विस्तृत है -आधुनिकता के साथ आज़ाद ख़यालात भी आते हैं -हमेशा यह सही साबित नही हुआ है -कई लोग आधुनिक होने के बाद भी या कहें बाहर से आधुनिकता की तस्वीर पेश करने के बाद भी दिमाग से सत्रहवी सदी में जीते हैं जिनमें पुरुष और महिलाएं दोनों शामिल होती हैं  .कई बार 
 तथाकथित आधुनिकता के कारण पुरुष तो पुरुष महिला से ही असुरक्षा महसूस होने लगती है -एक टीवी शो 'उड़ान' में एक संभ्रांत परिवार की डॉक्टर महिला हैं -महिला मरीजों को आत्मविश्वास देती हैं -उसे यह समझाती हैं कि औलाद पैदा न करना उसे कमतर नही बना देता पर वहीँ अपनी बहू  को कमतर साबित करने पर आमादा  होती हैं -वह अपने ही ससुराल में ही असुरक्षित रहती है -दरअसल ' आधुनिकता ' ही एक गहन चर्चा का मुद्दा है .जब भी किसी विचार ,व्यवहार या शैली में अति होती है तो उस में अवांछितता आना पूरी तरह संभव है -अति सर्वत्र वर्जयेत ! वैसे भी मनुष्य एक विवेकशील प्राणी है -तात्पर्य है कि हम यह क्यूँ भूल जाते हैं कि इसका उद्देश्य सुविधा बढ़ाना था -समाज के एक अहम् वर्ग को असुविधा और असुरक्षा देना नही ! 

                 सामान्यतः महिलाओं ,बच्चों और बूढों को समाज के शारीरिक ,मानसिक रूप से कमज़ोर माना जाता रहा है .इस भ्रांति के अपवाद बेशक सभी वर्गों में सभी समयों पर रहे हैं।उन्हें परिवार के शक्तिशाली या प्रभावशाली पुरुष सदस्य की छत्रछाया में रहना होता है -पर अब ऐसा नही है -ज़माना बदला -महिलाएं और बच्चे भी अपनी सुरक्षा खुद करने में सक्षम महसूस करते हैं पर इसी तेज़ी से होते बदलाव ने उन्हें प्रोत्साहित किया है तो इन दुर्भाग्यशाली घटनाओं ने हिचकिचाने पर भी मजबूर किया है .क्योंकि पुरुष /अन्य शक्तिशाली वर्ग के लोगों को यह मंज़ूर नही हुआ कि उनके प्रभुत्व के बिना ,रौब जमाये बिना वे बेख़ौफ़ होकर ,'आज़ाद 'होकर घूम सकती हैं तो फिर उन्हें फिर से वही याद दिलाने के नापाक मंसूबे और यह दम्भी मानसिकता महिलाओं का कारण है न कि सिर्फ आधुनिकता !! 
                                                            ----------------- स्पर्श चौधरी

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