शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

नीला





                                                            


"नील परिधान बीच सुकुमार
 खुल रहा मृदुल अधखुला अंग
 खिला हो ज्यों बिजली का फूल
  मेघ वन बीच गुलाबी रंग
   कामायनी की नायिकाश्रद्धाके वृत्तचित्र  में यदि नीले की  जगह पीला या कोई और रंग लिख कर देख लीजिये,  तो पंक्तियों का सोंदर्य शायद ही उतना  रहे. नीले आसमान के नजदीक, ऊँचे पर्वतो में स्थित गन्धर्व देश की राजकुमारी    के लिए  जयशंकर प्रसाद किसी और रंग की कल्पना  भी कैसे कर सकते थे. तभी तो कवि  नायिका के लिए नील रोम वाले वस्त्रो का ही चयन करते हैं.
 मसृण, गांधार देश के नील
 रोम वाले मेषों के चर्म,
 ढक रहे थे उसका वपु कान्त
 बन रहा था वह कोमल वर्म
 जनश्रुति है ,   विष के पान की वजह से शिव का कंठ नीला हो गया था. मैं नहीं मानता,  विष का रंग नीला भी हो  सकता है. संभव है, शिव गले में पुखराज  धारण करते हो, जिसका रंग नीला होता है , या फिर  आकाश का नीला रंग ही शायद   मानसरोवर झील में  घुल गया हो, जैसा की बाबा नार्गाजुन ने  कहा है.
तुंग हिमालय के कंधो पर,
छोटी बड़ी कई झीले हैं,
उनके श्यामल नील सलिल में,
......................................
हंसो को तिरते देखा है,”

 इसी मानसरोवर के नील सलिल के नियमित पान से  शिव का  कंठ नीला बन गया. जल्द ही  नीलकंठने  विशेषण से  संज्ञा का रूप धारण किया , और शिव का पर्याय बनकर शाश्वतता  हासिल की .
हाँ , अब मानसरोवर झील से ही बात याद आई , जरा देखिये झील का रंग कैसे आँखों में उतर कर उसे गहरा बना देता है. कोई पुराना गाना है ........
ये झील सी नीली आँखे,
 कोई राज है इनमें  गहरा ,
तारीफ करू क्या उसकी ,
जिसने तुझे बनाया
और जब गाने की ही  बात चली है , तो फिर किशोर दा का यह गाना कोई कैसे भूल सकता है:
नीले नीले अम्बर  पर चाँद जब आये
प्यार बरसाए , हमको तरसाए
फिलहाल यही चाँद की चांदनी जब समुद्र के नीलपन पर उतर रही थी, तो एक  यात्री इसनील जादू  का रहस्य जानने के लिए इतना प्रेरित हो गया, की उन्होंने इस जादू पर पर्दारमण प्रभावके सिद्धांत का प्रतिपादन कर उठाया. इस कार्य हेतु उन्हें नोवेल सम्मान भी मिला.
अब विज्ञानं की बारीकियो में उलझने के बजाय जावेद  अख्तर साहेब केनीला आसमा सो गयाकी तर्ज पर आसमान और समुद्र के नीलेपन को यहीं विराम देते हैं, और  थोड़ी इंकलाबी बाते करते हैं. मैं नील नदी के देश में होने वाली क्रांति की बात नहीं कर रहा हूँ , बल्कि हमारे देश के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में चंपारण के धरती पर एक जागरूक किसान राजकुमार शुक्ल और एक नवोदित नेता मोहन दास करम चन्द गाँधी के प्रयास से नील सत्याग्रह उपनिवेशवाद के दमनकारी एवं बाजारवादी  नीतियों  के खिलाफ किसानो के अहिंसक संघर्ष का पहला गवाह बना. नील आन्दोलन की सफलता ने लोगो को यह भरोसा दिलाया, की अहिंसक तरीके से भी प्रभावी प्रतिरोध किया जा सकता है. दूसरी नील क्रांति की भी आवश्यकता इस देश में महसूस की जा रही है. मझली एवं अन्य जल में रहने वाले जीवों की  आधुनिक खेती को  नील क्रांति कहा जाता है.   हरी , श्वेत   क्रांतियो के बाद अब यदि नील क्रांति को बढावा दिया जाये तो किसानो की आय में वृद्धि के साथ साथ कुपोषण की समस्या के समाधान में भी एक महत्वपूर्ण  कदम हो सकता है.

फिलहाल, विभिन्न प्रसंगों के  माध्यम से नीले की महता की चर्चा के पश्चात नल नील या नील आर्मस्तोंग  की कहानी बताने के बजाय इस  नील कथा    को  अपनी लिखी हुई कविता से विराम देना चाहता हूँ.

 मत बांधो  मुझे
  क्रांति के लाल रंग में,
  विरोध के काले रंग में,
  भक्ति के भगवा रंग में ,
  प्रगति के हरे रंग में,
 शांति के सफ़ेद रंग में ,
 समृद्धि के पीले रंग में
 मुझे विलीन हो जाने दो,
 कल्पना के नीले रंग में,
 समय और संयोग की
 इस छोटी सी जीवन तरंग में,
 पहचान की छोटी छोटी
 परिभाषाओं  के  परे ,
 क्या खूब हो, यदि मैं,
  आसमां और समुद्र के बीच
 घुल  जाऊं,  सिर्फ एक नीले रंग में.
                                  
                                 -    निशांत कुमार




3 टिप्‍पणियां:

  1. "मत बांधो मुझे
    क्रांति के लाल रंग में,
    विरोध के काले रंग में,
    भक्ति के भगवा रंग में,
    प्रगति के हरे रंग में,
    शांति के सफ़ेद रंग में,
    समृद्धि के पीले रंग में
    मुझे विलीन हो जाने दो,
    कल्पना के नीले रंग में,
    समय और संयोग की
    इस छोटी सी जीवन तरंग में,
    पहचान की छोटी छोटी
    परिभाषाओं के परे ,
    क्या खूब हो, यदि मैं,
    आसमां और समुद्र के बीच
    घुल जाऊं, सिर्फ एक नीले रंग में."

    बहुत सुन्दर लिखा है निशांत! :)

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  2. बहुत बहुत शुक्रिया ! दीपशिखा एवं ऋषभ .........

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