शनिवार, 27 अप्रैल 2013

मुफ्त में



जब लाली पूरब में बिखर बिखर जाती है,
भर कर उस छटा को पलकों तले,
रूह मेरी खिल खिल सी जाती है.
खोजें सब उसको इधर उधर, अजी!
ख़ुशी तो यूं ही मुफ्त में मिल जाती है.

गगन से छलकती बरखा झर झर
जो तन पर गिरे तो, मन को भी
मेरे भिगो भिगो जाती है,
खोजें सब उसको इधर उधर, अजी!
ख़ुशी तो यूं ही मुफ्त में मिल जाती है.

महकी महकी सी ये पवन जब,
गले मुझको लगाती है, रूखे से
मेरे दिल को बहला बहला सा जाती है,.
खोजें सब उसको इधर उधर, अजी!
ख़ुशी तो यूं ही मुफ्त में मिल जाती है.
                                                          ------- भावना

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