शनिवार, 27 अप्रैल 2013

ज़िन्दगी के पन्नों से ३ ...


बारिश हो रही थी| हम 'शाखा' में खेल रहे थे| खेलते-खेलते मेरी चप्पल का कस्सा निकल गया था| 'शाखा' खत्म होने के बाद मैं कस्से को वापस जोड़ने की कोशिश कर रहा था| मुझसे हो नहीं रहा था, तो मेरे एक मित्र मेरे पास आए और कहा, "लाओ, मैं जोड़ देता हूँ कस्सा| आखिर 'जोड़ने' का ही तो कार्य है अपना|
'जोड़ना' अर्थात् देशवासियों को एकता के सूत्र में पिरोना|

1 टिप्पणी:

  1. बेहद सुन्दर और अर्थपूर्ण -दो टूक पर चप्पल के उदाहरण से देश को जोड़ने वाली बात बड़ी प्यारी थी ! देखिये न ....ज़िन्दगी तो कभी भी कुछ भी सिखा देती है :)

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