शनिवार, 18 मई 2013

खोया क्यों है आज तू ?



अम्बर की हर ऊंचाई पर, समुद्र के गहन की कोख तक है तू
माँ के आंचल मे, घर के आंगन मे है तू
जीवन के हर एक पहलू में गतिशील, फिर भी खोया क्यों है आज तू

मन मे तूफ़ान को लिए घूमता है, पर पहाडों से आज भी थरथराता है तू
कई अरमानों को गुथ रखा है, पर शिकायतों का सैलाब है तू
सही राह का बोध है तुझे, फिर भी गलत राहों पर लुप्त है तू
सच-झूठ का परिज्ञान है, फिर भी खोया क्यों है आज तू

मिट चुका वजूद है तेरा, क्यों  विनाश से भयभीत है तू
बिक चुका ईमान है तेरा, वंचन से क्यों आतंकित है तू
भीगती रगों मे ओजस है इतना, इस क्रांति को क्यों नकारता है तू
ऎलान का लय निकट है, फिर क्यों  आज खोया है तू
                                   
                                                                                  ------------------  निमिष मेहता

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