गुरुवार, 15 अगस्त 2013

आज़ादी और कुछ सवाल !!

    
आज़ादी के कुछ छियासठ साल पूरे होने को आये हैं ! और हर बार हम सोचते हैं कि शायद अगले साल हम कुछ बेहतर होंगे पर बेहतरी का तो पता नही हम अपने मानकों से नीचे ज़रूर गिरते नज़र आ रहे हैं.हाल ही की ख़बरों पर नज़र डालें तो पाएंगे कि सी.बी.आई. तो अभी भी ‘आज़ाद’ नही हो पायी और न ही इस ‘ तथाकथित ‘लोकतांत्रिक देश में राजनीतिक दलों से यह सहन हुआ कि सूचना के अधिकार के तहत ही सही उन्हें चुनने वाले आम लोग उनसे कोई सवाल पूछ सकें ! हाल ही में देश में संविधान निर्देशित कुछ अधिकारों से जुड़े गंभीर प्रश्न हमारे समक्ष और भी डटकर खड़े हो गये हैं मसलन क्या देश के नौनिहालों को साफ सुथरे माहौल में पोषक आहार पाने का अधिकार नही है ,क्या एक गरीब की पेट की आग और उसकी ज़िन्दगी इतनी सस्ती है ?; क्या समाज के एक तबके से उनकी आजीविका के अधिकार को छीनने के बाद उनसे जीने की सभी उम्मीदें भी ले लेना चाहिए ,जितनी संवेदना सुरक्षा को लेकर है क्या वो इस बात की अनुमति देती है कि आप उसी तबके की ज़िन्दगी गर्त में धकेल दें ;क्या भाषा और अन्य के आधार पर बँटता जा रहा यह देश पहले से ही नक्सलवाद जैसे आन्तरिक शत्रुओं से नही जूझ रहा है और पहले से ही हज़ार हिस्सों में बंटा हुआ है !क्या एक माँ जिसके पहले से ही इतने सारे बच्चे हों और सब किसी न किसी समस्या से जूझ रहे हों तब एक और बच्चे का जन्म क्या कुछ बेहतर करेगा ?;क्या इससे बाकी बच्चे भी बिदक नहीं जायेंगे ?क्या ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा को पालने वालों को ऐसे ही ‘तोहफे’ मिलते रहेंगे ? ;क्या सभी गलतियाँ सरकार की हैं या हम और हमारा समाज जो इस देश को बनाता है -भी इसके कहीं न कहीं ज़िम्मेदार हैं ? क्या एक लोकतंत्र में अपने अधिकारों के तहत राजनीतिक दलों से सवाल पूछने का हक बेमानी है ? क्या हम सचमुच ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी ‘का जश्न मना सकते हैं इतने सालों बाद भी पूरी तरह ? क्या पुलिस ,क़ानून की असंवेदनशीलता को अब भी हम चुपचाप झेलने की हालत में हैं ? क्या अब भी हम स्वार्थी बने रहना चाहते हैं ;क्या अब भी हम छोटे छोटे ,निरर्थक और अनावश्यक प्रपंचों और बातों में पड़े रहकर अपने देश की नैय्या को डूबते रहने देना चाहते हैं क्यूंकि हम उन अभागों में से नही हैं जिनके लिए ज़िन्दगी का हर दिन एक जंग के बराबर है !!

खैर प्रश्नों की यह फेहरिस्त निहायत ही लम्बी है पर अब हरेक को गिनाने की शायद ज़रुरत नही होगी क्यूंकि ये सवाल कहीं न कहीं हम में से हरेक की ज़िन्दगी और वजूद से राब्ता रखते हैं इसीलिए यह कुछ सवाल आपके विवेक और ज़ज्बे को जगाने के लिए काफी हैं !! वो ज़ज्बा जो सिस्टम की गंदगी की दुर्गन्ध से नाक मुंह को सिकोड़ने की बजाय खुद उस में उतरने कर उसे साफ़ करने का हो ,जोकि हमेशा सरकार जो हमारे ही वोटों से बनी है उसे उसके काम तो याद दिलाये ही पर खुद हमें भी एक नागरिक के कर्त्तव्य और ज़िम्मेदारी का भी एहसास कराये क्यूंकि अपने गिरेबान में झांकेंगे तो पाएंगे कि उसे आका हमने ही बनाया है और वो हमारे जैसा ही एक इंसान है!

कहते हैं एक लकीर को ऐसे छोटा किया जा सकता है कि हम उसके सामने एक और बड़ी लकीर खींच दें तो बस हमें वही करना है सरकार की लकीर को अगर सीधा करना संभव हो तो करो नही तो जी जान लगाकर एक इतनी बड़ी लकीर खींचों कि सब की नज़रें बस अब उस नयी लकीर पर हो !! वैसे एक बात जो अक्सर हमारे जैसे सोशल नेटवर्क पर बात करने वालों को शायद सुनने को मिलती हो कि क्या हो जायेगा चर्चा करके,लिखके , एक पेटिशन साईन करके तो ऐसे लोगों के लिए मेरे चेहरे पर एक मंद सी मुस्कराहट आ जाती है और एक ही जवाब जोकि एक प्रश्न है-होता है कि क्या आप अभी भी जनता याने कि खुद की आवाज़ ,दबाव और ताक़त से नावाकिफ हैं ? दरअसल हमारी पीढ़ी को ‘प्रवचन’ सुनने की आदत नही है इसीलिए ऐसे लोगों के साथ तर्क वितर्क शायद कोई परिणाम ना लाये पर जब आप खुद से ये सवाल करेंगे तो पायेंगे कि भले ही इस देश में कितना गड़बड़ घोटाला हो रहा हो ,कितनी ही ‘दुर्गा’ सज़ा पा रही हों ,कितनी ही निर्भया बेआबरू हो रही हों पर इन मुद्दों पर चर्चा और न्याय की संस्थाओं को हिलाने का माद्दा आज भी हमारे पास सुरक्षित है !! क्यूंकि वो ‘शौर्य ‘ ,वो आतंक, तानाशाही और अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाना न सिर्फ हमारी ज़रुरत है बल्कि वक़्त की बेसब्र मांग भी है !!

(आप कॉर्पोरेट जॉब में हैं ,ढेरों बधाईयाँ !! पर जनाब मैक डोनाल्डस में खाने वाले ,एयर कंडिशनर की हवा में मुस्कुराने वाले आप –कभी यह ख्याल नही आता आपके दिमाग में कि देश तकनीकी तरक्की काफी कर चुका है और उसकी फ़िक्र करने वाले बैठे हैं न संसद में पर नंगे भूखे ‘हल्कू’ की तकलीफ की कहानियाँ सिर्फ कचौरी खाकर फेंक दिए गये अख़बार के टुकड़े में दबी कूड़ेदान में चली जाती हैं !! )
तो बस हमारे जैसे और आपके जैसे युवाओं की ,जोशीले लोगों की ज़रुरत है इस मुल्क को वरना कहीं हम फिर से ‘देसी’ हुकूमत के गुलामी के शिकंजे में जकड न जायें !!
उठो ,जागो और अपने लक्ष्य की प्राप्ति तक न रुको (स्वामी विवेकानंद)
                                                                                            - स्पर्श चौधरी 

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