(मेरी लिखी गयी कुल 4 -5 कविताओं में से ये ‘लोकल ‘ के लिए टिकट की कतार में लगे हुए बाहर ठीक
कान्जुर स्टेशन से सटे रहवासों को देखकर ;दो तरह की जिंदगियों के विरोधाभास पर
उमड़ते ख्यालों से प्रेरित होकर लिखी गयी है ....लोकल में अगर आपको बैठने को मिल
जाए और हाथ में डायरी पैन हो ,लिखने की खुजली हो रही हो तो क्या ही बात ! खैर आगे
के पन्ने भी मुंबई से जुड़ी यादों से भरे हैं
)
एक ऐसी भी ज़िन्दगी !
झरोखे से झाँकती
ज़िन्दगी
ठीक रेल की
पटरियों से सटी ;
सरपट भागती रेलें
औ’
उससे भी तेज़
भागती यह ज़िन्दगी ,
कहीं तो आलीशान
महलों से
सजा है जीवन
तो कहीं मजबूर है
कोई
माचिस के डिब्बों
से ‘घर’ के हिस्से में
ज़मीं भी ज़रा कुछ
कम ही आती है
कुछ अटके हैं
आसमां और ज़मी के बीच
तो कुछ रातें
कटती हैं तारे गिनते
वहीँ पड़े हैं कुछ
भीगे तौलिये
तो कबूतरों ने भी
सोचा चलो !
चलो ...आज करें
यहीं बसेरा ..
गर भूल गये हों
आप
रफ्तारों को
,कतारों को ....
अरे ट्रेन तो
पकड़ी ही होगी आपने
आज चलो उसी ‘घर ‘
को चलें
यह रंग भी है अजब
ज़िन्दगी का ,
जो दूर से तो
फबता है
पर नजदीकियां
आँखों में देती हैं चुभन !
ठीक वैसे ही जैसे
ये भागती भीड़
यूँ तो नही करती
असर
पर जब हम हों
हिस्सा उस ‘सैलाब ‘ का
तो कुछ भुनभुनाहट
आ जाती है ,
कभी त्योरियाँ चढ़
जाती हैं
तो कभी ‘बढती
आबादी ‘लगती खटकने ऐसे ही
वह गज भर की जगह
एक घरौंदा
किसी का ‘सब कुछ
‘ होता है
ताउम्र मोल
चुकाएगा कोई उसे अपना बनाने के लिए
ऐसी कितनी
जिंदगियों को पार कर
होता है आज का यह
‘ सफ़र ‘ पूरा
और फिर ऐसी भी
होती है इक ज़िन्दगी !
मुंबई के ये रंग
हर दफ़ा जब भी मैं आई.आई. टी की दुनिया से बाहर निकलती हूँ मुझसे रूबरू होते हैं.सपनों का शहर –ग्लैमर की चकाचौंध ,कुछ नया करने का सोचने वाला दिमाग ;सभी का यह शहर बाँहें फैलाये स्वागत करता है –लोकल में बैठे बैठे आज फिर मैं इसी ज़िन्दगी
के अलग-अलग पन्नों को पढ़ रही हूँ !
रहते हुए तीसरा बरस है
मेरा यहाँ पर एक घर मेरा भी है –मेरा ठौर ,मेरा हॉस्टल ....कभी कभी सोचती थी कि
यार लड़कियों (खासकर ) के लिए मुंबई ही सबसे अच्छा शहर है पढने और जॉब के लिए ...
खैर सब कुछ खेल नज़रिए का
ही तो है –हो सकता है किसी को इस शहर ने कडवी यादें दी हों तो कसी को हमेशा के लिए
इसे छोड़ने पर मजबूर कर दिया हो ...पर अभी तक मेरे लिए इस शहर के मायने कई हैं .और
हर वक़्त पापा के सुरक्षा के घेरे में चलने वाली स्पर्श अब बड़ी हो गयी थी उसे अब हर
काम अकेले करना था और ये बड़ा रोमांचक और मजेदार प्रतीत होता था ....और बस इस तरह
धीरे धीरे इस शहर से दिल जुड़ गया .....:) J
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